a tourist student

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खुद को एक छात्र मानता हूँ वो जो पर्यटक भी है.जो सीखता हुआ यात्रा करता है.यात्रा करता हुआ सीखता है.यात्रा और अध्ययन दोनों जीवन में द्विआयामी हैं -अन्दर की यात्रा और बाहर की यात्रा .अध्ययन का स्वरुप भी यही है.दोनों को अनुभव कर अपने विद्यार्थियों को सौंप दूंगा .ब्लॉगर पर कुछ और दोस्तों को शायद कुछ रुचिकर मिल जाये.इस क्रम में डाइरी लेखन का सुख तो मिलेगा ही.शेष विश्लेषण आपका........

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Tuesday, September 25, 2012

राजस्थान -मेरे अनुभव

 
कभी नहीं सोचा था कि तराई की वो हरी -भरी ज़मीं को छोड़ कर 'धोरों की धरती' राजस्थान आ जाऊंगा .ऊँट और रेगिस्तान को किताबों से बाहर हर दिन देखूंगा ,जी भर के देखूंगा (मज़ेदार बात ये थी, कि 2008 में   कोटपूतली में ऊंट  पहली बार देखे थे ).

प्रशासनिक सेवाओं की अपनी दावेदारी के क्रम में किये गए भारत और विश्व के 'सामान्य अध्ययन '  की तैयारी ने ज्ञान के  जो  नए आयाम दिए  थे ।उसके चलते  दैनंदिन  जीवन में जब भी  ऐसी कोई चीज़ नज़रों से टकराती है , तो बरबस ये ख्याल आता है ,कि , "अरे !ये तो मैंने पढ़ रखा है ."
मरुधरा का जहाज 
"मसलन जब करणी माँ के देशनोक में दर्शन हुए तो   याद आया कि इसी मंदिर को  कितनी बार 'चूहों वाले मंदिर 'के रूप में पढ़ा था।बाबा रामदेव एक लोकदेवता हैं ,जैसे गोगा जी और पाबू जी आदि हैं ,पर आज रामदेवरा और गोगामेडी कितने नज़दीक हैं .थार से निकटता मुझे याद कराती है ,कि  बार बार 'THE GREAT INDIAN DESERT 'पढाना,पढ़ना  कितना खोखला या सतही था .थार के विस्तार का अनुभव बिलकुल अलग है .
कालीबंगा -एक पुरास्थल 



इसलिए   मैं ये  मानता हूँ  कि "दुनिया को किताबों में और किताबों  के ज्ञान को दुनिया में देखना ही वास्तविक शिक्षा है ."

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